गुरुवार, 28 जनवरी 2010

रास्ते


चीख पुकार मची है हर ओर.
भागी जा रही है दुनिया.
धक्का मुक्की में औंधे मुँह
गिर पड़ी सब्जी वाली बुढ़िया.

पुजारी जी का जनेऊ
फँस गया
पादरी जी के क्रॉस में.
मौलवी साहब का पाजामा
चिर गया
ग्रंथी जी की किरपान से.
किसी को परवाह नहीं-
न धर्म की न शर्म की.

बस दौडे जा रहे हैं सब-
चाहे जिस दिशा में,
चाहे जिस रास्ते पर.

हर रास्ता
ले जाता है बाज़ार तक.
वह रास्ता कहाँ है
जो ले जाए प्यार तक?


-पूर्णिमा  शर्मा