शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

गर्भ प्रश्न

“नहीं, मम्मी, नहीं.”
-                         गर्भ में से चीखती है एक अजन्मी लड़की
और दस्तक देती है माँ के दिलो-दिमाग पर,
पूछती है –
“मम्मी, मेरे ही साथ क्यों हो रहा है ऐसा?
क्यों हो रही है मुझे ही मारने की साज़िश?
जन्म से पहले क्यों पढ़े जा रहे हैं मृत्यु के मंत्र?
क्यों मिलाया जा रहा है तुम्हारे गर्भजल में जानलेवा ज़हर?
क्यों बढ़ रहे हैं दस्तानों वाले हाथ मेरी ओर वक़्त से पहले?
क्यों चीर रहे हैं तुम्हारे गर्भ को तलवार बनकर डाक्टर के औज़ार?
अस्पताल की चिमटियां मुझे दबोच रही हैं क्यों
नरक की यमफाँस बनकर?
तुम कुछ बोलती क्यों नहीं मम्मी?
आखिर तुम भी तो एक लड़की हो!
तुम्हें मुझसे इतनी नफरत क्यों है?
मुझे जीने का अधिकार क्यों नहीं?
मेरा अपराध क्या है, मम्मी?”

पूछती है गर्भ में मारी जाती हुई बेटी
और जवाब देने की कोशिश करती है
आपरेशन टेबल पर बेहोशी में जाती हुई माँ –

“मेरी बेटी,
हम निरपराधों का यही अपराध है
कि हम लडकियां हैं .
मेरे जन्म पर भी घर में स्यापा छा गया था,
थाली नहीं बजाई थी किसी ने,
जिस तरह लड़कों के जन्म पर बजाते हैं.
तेरे जन्म पर भी स्यापा ही होना था .
तू तो मर रही है
बस आज की मौत,
तू क्या जाने
तेरी माँ ने जन्म से आज तक
कितनी मौतें मरी हैं
और न जाने कितनी मौतें और मरनी हैं -
तेरी दादियों, नानियों की तरह,
क्योंकि यह दुनिया -                                                                                                       
दादाओं की है, दादियों की नहीं .
नानाओं की हैं, नानियों की नहीं .
पिताओं की हैं, मम्मियों की नहीं .”

और दहल उठता हैआपरेशन थियेटर
बेहोश मम्मी की ह्रदय विदारक
चीख से .
डस्टबिन में फेंकी जाती हुई
बेटी का दिल धड़कता है
आखिरी बार –


“नहीं, मम्मी, नहीं”.

- पूर्णिमा शर्मा