मंगलवार, 1 मार्च 2016

सच और कड़वाहट

सत्य या सच के साथ मुहावरे की तरह दो विशेषणों का प्रयोग होता है. एक है नग्न और दूसरा है कटु. आपने भी बहुत बार यह कहा-सुना होगा कि सच नंगा होता है और सच कड़वा होता है. मुझे लगता है कि सच के नग्न होने का अर्थ है कि जहाँ कोई पर्दा हो, आवरण हो, दुराव-छिपाव हो वहां झूठ और पाखंड निवास करता है, सत्य नहीं. जब किसी तथ्य पर से सारे परदे हट जाएं तब जो बचता है वह ही सत्य है और अपनी इस बेपर्दगी या नग्नता के कारण ही वह विश्वसनीय होता है.

लेकिन सत्य का केवल विश्वसनीय होना काफी नहीं. उसे हितकर भी होना चाहिए. ऐसा सत्य मनुष्यता के किसी काम का नहीं जो हितकर न हो – भले ही वह हद दर्जे का नंगा सच हो. सत्य के साथ शिवत्व का गठबंधन उसके ऊपर लोक-हित की जिम्मेदारी भी डालता है. लोक-हित के लिए यह आवश्यक है कि यदि कहीं कुछ ऐसा है जो अशिव है या अहितकर है या समाज के सात्विक सौन्दर्य को हानि पहुँचाने वाला है तो उसकी चिकित्सा मधुर वचन रूपी मीठी गोलियों से नहीं की जा सकती. ऐसे में सामाजिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कटु सत्य अथवा कड़वे सच की ज़रुरत होती ही है.

कड़वे सच या सच में मिली कड़वाहट के उदाहरण के रूप में हमें उन संतों और भक्तों की बानियों को याद करना चाहिए जिन्होंने प्राणों की परवाह किए बिना इस कड़वे सच की घोषणा की थी कि राज-दरबार में जाने से बुद्धिजीवी व्यक्ति का सम्मान बढ़ता नहीं, बल्कि घट जाता है क्योंकि उसे ऐसे अयोग्य व्यक्तियों के सामने झुक कर सलाम करना पड़ता है जिनको देखने मात्र से दुःख उत्पन्न होता है. भक्त कवि कुम्भन दास के शब्दों में – ‘’ संतन को कहा सीकरी सो काम/ आवत जात पनहिया टूटी, बिसरि गयो हरिनाम / जिनकौ मुख देखै दुःख उपजत, तिनको करन परी परनाम / कुम्भनदास लाल गिरिधर बिनु, और सबे बेकाम.” 

कड़वे सच के प्रबल प्रयोक्ता और समर्थक के रूप में हम संत कबीर को भला कैसे भूल सकते हैं. स्वर्ग और जन्नत के ठेकेदार बन कर बैठे हुए तथाकथित मार्गदर्शकों को चाहे जितना बुरा लगे, व्यापक लोक-हित में कड़वा सच बोलने से कबीर पीछे नहीं हटते. कहा जाता है कि अनेक बार उन्हें समाप्त करने या मारने के प्रयास किए गए पर उन्होंने सच की कड़वाहट को बरकरार रखा और बीच बाज़ार खड़े होकर पाखंडियों को ललकारते रहे. जो लोग खुद देह-व्यापार करने वाली स्त्रियों के तलवे चाटते हैं वे भला सच्चरित्रता के उपदेश कैसे दे सकते हैं?- यह पूछते हुए कबीर ने एक-एक को फटकार लगाई और पाखंड का खंडन करने के लिए कड़वे सच के प्रयोग का आदर्श स्थापित किया. आधुनिक युग में महर्षि दयानंद ने भी पाखंड का खंडन करने के लिए यही मार्ग अपनाया. अतः कहा जा सकता है कि कड़वा सच ही सामाजिक रोगों की दवा है. 

- डॉ. पूर्णिमा शर्मा , 208-ए, सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स, गणेश नगर, रामंतापुर, हैदराबाद – 500013. मोबाइल – 08297498775.